Tuesday, December 9, 2008

"''चिरागी ''

हमें चिरागी देते जाओ ,
अपने ही मजार पे ,
रोज चिराग
जलाया करेंगे हम.....

तुम्हे याद करने के
बहाने बहुत है ,
वादा बस इतना तुम्हे नहीं,
याद आया करेंगे हम .....!

नज़रे दूर तक नहीं जाती ,
जलते चिराग का धुँआ सही ,
तुम्हारे कशाने पर रोज
आया जाया करेंगे हम ...!

चाँद बगैर काटा है कई रात
खुमारी के ,
अब रोज रातो को जागा करेंगे ,
चाँद से निगाहे मिलाया करेंगे हम ....!

उम्मीद थी जहाँ से रौशनी की ,
इल्जाम-ए-इश्क देखो " मधुर''
अंधेरो मे काफिलों को रोज
रोशनी दिखाया करेंगे हम...!

मधुकर (मधुर )

Monday, December 8, 2008

मधुर डिप्रेशन


हर आदमी के अंदर
एक आस होती है ,
आनोखी सी प्यास होती है ,
जिसे वो पाना चाहता है ,
सारी दुनिया को
दिल मे बसाना चाहता है ,
ये उसका " मधुर इम्प्रेशन " है !
और
वो जो
छुटा सा रह गया ,
मिला नहीं,
तनहा कर गया ,
मिल नहीं रहा,
मिलेगा भी नहीं ,
उसका " डिप्रेशन" है !
और
खोने पाने की खेल में
दिल की चादर पर चढ़ गया ,
"मधुर डिप्रेशन" है !

मधुकर (मधुर)

Wednesday, October 29, 2008

''गुब्बारा और आदमी''

आज आम आदमी भी गुब्बारे की तरह ,
अन्दर अजीब सि गुब्बार लेकर बैठा है .....!

शर्म ही नचा रही है जिंदगी शायद , वर्ना
बहुत हलकी सी दीवार सजा कर बैठा है ...!

आज खामोशी है हमारे चारोतरफ मगर ,
आवाज एक भविष्य की फीजा मे छुपाकर बैठा है.!

जो रोकती है मुझे जीने से, ये जिंदगी उस की है ,
जाने किन -२ रिश्तो मैं खुदको फशा कर बैठा है !

समां मिलती नहीं और जमी हमें भाती नहीं ,
जाने क्या नविस्ता हाथो मे लिखाकर बैठा है ....!

कोई देख ना ले "मधुर"-रंग -हवा -ए-हुस्शन ,
जाने कैशे-२ रंग दिल मे छुपाकर बैठा है ..........!

आज आम आदमी भी गुब्बारे की तरह ,
अन्दर अजीब सि गुब्बार लेकर बैठा है .............!

मधुकर(मधुर)

कई सदिया लगेंगी तुम्हे भुलाने में

पाए खतो को आग ,
आग को धुआ धुआ को ,
हवा में मिलाने में
कई सदिया लगेंगी तुम्हे भुलाने में.....!

मुस्कराहट आइसी जैसे
चुस्की आग की ,
सफत से उतर कर
दिल-ए -घर आने में
कई सदिया लगेंगी तुम्हे भुलाने में......!

खनिज खुद खोजने ,
उसे खोलने और
उसे खुद गनिब बनाने में
कई सदिया लगेंगी तुम्हे भुलाने में....!

कुनबा लिखा प्यार से प्यार का
और खामा तोड़ दीं
आखरी शब्द चलाने में
कई सदिया लगेंगी तुम्हे भुलाने में....!

"मधुर " शब्द चुन्न्ने लिखने
और चीला चिला कर उन्न्हे "मधुर "
सुनाने में
कई सदिया लगेंगी तुम्हे भुलाने में....!

मधुकर (मधुर )

चाँद उतर कर

चाँद उतर कर मेरे घर
आया नहीं ,
तुझसे जिंदगी मांगी थी
तेरा साया नहीं .....!

ये चिराग
जलता जलता मरेगा ,
अगर आकर तुने
बुझाया नहीं ........!

पानी तेरे चहरे का
दिल छू गया ,
पर मेरी आँखों पे
नजर आया नहीं ....!

डायरी पे लिखा मेरा
हर एक शब्द मुझे
दुनडेगाअगर डायरी के
उन "मधुर "पन्नो को मिटाया नहीं .!

चाँद उतर कर
कर मेरे घर आया नहीं ,
तुझसे जिंदगी मांगी थी
तेरा साया नहीं .....!

मधुकर (मधुर )

Tuesday, October 28, 2008

...दुनिया में कोई नहीं है....

इतना समझो "मधुर " की दुनिया में कोई नहीं है,
आंसु ही आंसू है वादिया अभी तक रोई नहीं है ..!

सूरज को अपनी और चाँद को अपनी फिकर है ,
टूटे तारो का यहाँ पर कोई नहीं है .....!

पानी तभी मिलेगा जब सावन आएगा ,
छा देने वाला यहाँ कोई नहीं है .........!

सजा सको तो सजा लो गम के कुछ और पन्ने "मधुर" ,
सुनने वाला यहाँ कोई नहीं है ...........!

इतना समझो "मधुर " की दुनिया में कोई नहीं है .......!

मधुकर (मधुर )